अगर पंचगव्य शब्द का संधि विच्छेद करें तो पंच+गव्य मतलब गौमूत्र, गोबर, दूध, दही, और घी के मिश्रण से बननें वाले पदार्थ को पंचगव्य कहा जाता हैं।आयुर्वेद में इसका इस्तेमाल औषधि के रूप में किया जाता है।
प्राचीन समय में इसका उपयोग खेती की उर्वरक शक्ति और उसकी क्षमता को बढ़ाने के लिए भी किया जाता था, साथ ही साध पौधों में रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाने के लिए भी किया जाता था। इसी कारण पुराने समय में खेती अच्छी होती थी। पुरानी पीढ़ी से सिख लेते हुए आज के किसानों को भी परम्परागत कृषि पद्धति को अपनाना चाहिए तभी आने वाली पीढ़ी को एक सुखद और खुशहाल जीवन मिल पाएगा। प्राचीन समय से ही भारत जैविक आधारित कृषि प्रधान देश रहा है। सदियों से विभिन्न प्रकार के उर्वरक उपयोग होते आए हैं जो पूर्णतः गाय के गोबर और गोमूत्र पर ही आधारित थे।देशी गाय के उत्पादों में, पौधों के लिए आवश्यक सभी पोषक तत्व पर्याप्त व सन्तुलित मात्रा में पाये जाते हैं|
जैसा की हम सभी जानतें है की पंचगव्य देसी गाय (पंचगव्य के फायदे) से प्राप्त पांच चीजों का एक समूह है। जिसमें गोदुग्ध, गोदधी (दही-छाछ), गोमेह (गोबर), गोघृत (घी) व गोमूत्र (मूत्र) भी शामिल हैं।सेहतमंद रहने के लिए पांचों को अलग अलग और समूह, दोनों रूप में इस्तेमाल किया जाता हैं।
गाय का दूध: इस दूध में कैल्शियम, विटामिन बी-12,पोटेशियम, आयोडीन जैसे तत्त्व पाये जाते हैं। यह इंसान की इम्युनिटी ज्यादा बढ़ाकर कोशिकाओं को ऊर्जा देता है। साथ ही साध दिमाग, हड्डी और मांसपेशियों को मजबूत करता है।
गोमेह यानी (गाय का गोबर): गोबर के कंडों को जलाने से आपका वातावरण शुद्ध होता है। साथ में ही इसमें मौजूद अर्क से तैयार किया जाता है वो है क्रीम एक्जिमा, एलर्जी जैसे त्वचा रोगों में प्रयोग होती है। यह एंटीसेप्टिक, एंटीबैक्टीरियल, एंटीफंगल और विटामिन-बी12 के गुणों से भरा हुआ होता है।
गोमूत्र (मूत्र): गाय के मूत्र में 15% पानी, 2.5% यूरिया, मिनरल्स[1], एंजाइम्स, पोटेशियम, विटामिन्स और सोडियम सभी 2.5% की मात्रा में होता हैं। जो की हृदय रोग, कैंसर, टीबी, पीलिया, मिर्गी व हिस्टीरिया आदि रोगों में विशेषज्ञ की सलाह से लेने पर यह फायदा करता है।
गोघृत (घी): गाय के दूध से बने घी में कैल्शियम, विटामिन-ए, डी और ई पाए जाते हैं। यह दिमाग व शारीरिक के विकास लिए बहुत ही फायदेमंद है। इससे आंखों की रोशनी भी दुरुस्त रहती है साथ ही साथ मिर्गी, लकवा, कमजोरी, जोड़ों के दर्द, आर्थराइटिस और याददाश्त में सुधार होता है। भोजन में इसके प्रयोग के साथ ही इसे आधार बनाकर औषधियां भी तैयार की जाती हैं।
गोदधी (दही): इसमें कैल्शियम, विटामिंस, प्रोटीन, मिनरल्स जैसे तत्व तो होते हैं। साथ ही यह बच्चों और बड़ों में पाचनक्रिया को मजबूत करने और भूख बढ़ाने का काम भी करता है।
शास्त्रों में गाय के रंग भेद से भी इन इन वस्तुओं को ग्रहण करने का विधान बताया गया है जैसे पीली गाय का दूध, नीली गाय का दही, काली गाय का घी, लाल गाय का गोमूत्र व सफेद गाय का गोबर ग्रहण करने के लिए बहुत खास होता है।
दरअसलगाय का दूध स्वादिष्ट ठण्डा, कोमल, घी वाला, गाढ़ा, और स्वच्छ होता है। गाय का दूध अच्छा मीठा, वातपित्तनाशक और तत्काल वीर्य उत्पन्न करने वाला होता है। इस प्रकार गाय का दूध जीवन शक्ति को बढ़ाने वाला सर्वश्रेष्ठ रसायन माना गया है।
अब हम अगर दही की बात करें तो चरकसंहिता में दही का महत्व बताया गया है चरकसंहिता के अनुसार दही रूचि पैदा करने वाला, शुक्र को बढ़ाने वाला, चिकनाई लाने वाला, मंगल करने वाला व शरीर को हुष्ट पुष्ट रखनें वाला माना जाता है। अतिसार शीतक पुराने घान, मूत्र सम्बन्धी रोगों को दूर करने वाला और शरीर की दुर्बलता को दूर करने वाला माना जाता है।
यहीं योग रत्नाकार के हिसाब से गाय का घी बुद्धि, कान्ति, स्मरण शक्ति को बढाने वाला होता है, येबल देने वाला, शुद्धि करने वाला, गैस मिटाने वाला, थकावट मिटाने वाला रामबाण है । गाय का घी अमृत के समान माना जाता है जो जहर का नाश करने वाला और नेत्रों की ज्योति बढाने वाला होता है।
वहीं चरक संहिता के अनुसार आदि आयुर्वेद के ग्रन्थों में गोमूत्र की बड़ी महिमा बताई है। गोमूत्र तीता, तीखा, गरम, खारा, कड़वा, और कफ मिटाने वाला है। हल्का अग्नि बढ़ाने वाला, बु़द्धि और स्मरण शक्ति बढ़ाने वाला, पित्त, कफ और वायु को दूर करने वाला होता है। त्वचा रोग, वायु रोग, मुख रोग, अमावत पेट के दर्द और कुष्ठ का नाशक है। खांसी, दमा, पीलिया, रक्त की कमी को गोमूत्र देर करता है। मात्र गोमूत्र पीने से खुजली, गुदा का दर्द, पेट के कीड़े, पीलिया आदि रोगों का शमन होता है।
क्या आपको पता है की गोबर का सबसे बड़ा और कारगर गुण, कीटाणुओं का नाश करना है। दरअसल गाय के गोबर (पंचगव्य के फायदे) में हर प्रकार के कीटाणुओं को नष्ट कर देनें की क्षमता होती है। इसलिए गाँव में आज भी कोई भी शुभ कार्य करने से पूर्व घर को गोबर से लीपा जाता है। गांव और कस्बों में आज भी इस परंपरा को निभाया जाता है। इससे घर की पवित्रता व स्वच्छता दोनों ही बनी रहती है और नकारात्मक शक्तियां घर से दूर होती हैं। गोबर हैजे, प्लेग, कुष्ठ और अतिसार रोगों में फायदेमंद है। पंचगव्य स्वंय में एक औषधि है। योगरत्नाकर में इसके महत्व का वर्णन कुछ इस प्रकार किया गया है। की गाय के गोबर का रस, दही का खट्टा पानी, दूध, घी और गोमूत्र इन सभी चीजों को बराबर मात्रा में लेकर बनाई गई औषधि प्रयोग करने से शरीर की सूजन, पागलपन, और उदर रोगों में लाभ मिलता है। ऐसी भा मान्यता है की इस औषधि को लेकर पूरे घर में छिड़कने से भूतप्रेत बाधा, आर्थिक तंगी और रोगों से भी मुक्ति मिलती है।